21 अगस्त को होगा नामांकन, मौजूद रहेंगे BJP शासित राज्यों के मुख्यमंत्री
भारत की राजनीति में उपराष्ट्रपति का पद हमेशा से एक अहम और गरिमामय स्थान रखता है। संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी उपराष्ट्रपति पर ही होती है क्योंकि वे राज्यसभा के सभापति भी होते हैं। वर्तमान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के कार्यकाल के बाद अब यह सवाल चर्चा में है कि आखिर NDA (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) की ओर से अगला उपराष्ट्रपति उम्मीदवार कौन होगा।
राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज़ है क्योंकि 21 अगस्त को नामांकन दाखिल होना है और इस दौरान भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी मौजूद रहेंगे। यह संकेत देता है कि NDA इस बार भी एक बड़ा और रणनीतिक दांव खेलने की तैयारी कर चुका है।
धनखड़ जी का कार्यकाल और भूमिका
जगदीप धनखड़ 2022 में NDA के उम्मीदवार के रूप में उपराष्ट्रपति चुने गए थे।
- उन्होंने राज्यसभा की कार्यवाही में कई बार विपक्ष को कड़े शब्दों में जवाब दिया।
- किसानों, शिक्षा और न्यायपालिका से जुड़े मुद्दों पर उनका बेबाक रवैया सुर्ख़ियों में रहा।
- वे भाजपा नेतृत्व के करीबी माने जाते हैं और “सख्त लेकिन संवैधानिक” छवि रखते हैं।
धनखड़ जी के बाद NDA को ऐसा चेहरा चाहिए जो संसद की जटिल राजनीति में संतुलन बना सके।
NDA की रणनीति क्यों अहम है?
NDA के पास इस वक्त लोकसभा में प्रचंड बहुमत है और राज्यसभा में भी उसकी स्थिति मजबूत है। लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार का चयन केवल बहुमत का सवाल नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश और भविष्य की दिशा भी तय करता है।
- 2029 चुनाव को ध्यान में रखते हुए सामाजिक समीकरण साधना होगा।
- क्षेत्रीय दलों को साधने के लिए भौगोलिक और जातीय संतुलन देखा जाएगा।
- एक ऐसा चेहरा लाना होगा जो विपक्ष के लिए भी स्वीकार्य लगे।
संभावित नामों की चर्चा
1. डॉ. के. लक्ष्मण
भाजपा के दिग्गज दलित नेता और संगठन में मजबूत पकड़। दक्षिण भारत में भाजपा के विस्तार के लिए उनका नाम चर्चा में है।
2. स्मृति ईरानी
केंद्रीय मंत्री और अमेठी से राहुल गांधी को हराने के बाद राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा चेहरा। महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए NDA उन्हें आगे कर सकता है।
3. भूपेंद्र यादव
अनुभवी संगठनकर्ता और राजस्थान से बड़े ओबीसी नेता। राज्यसभा का अनुभव भी रखते हैं।
4. अनुराग ठाकुर
हिमाचल प्रदेश से युवा चेहरा। भाजपा भविष्य में उन्हें बड़ा पद देकर “युवा राजनीति” का संदेश दे सकती है।
5. राम माधव
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े और विदेश नीति के जानकार। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की राजनीति को प्रस्तुत करने में उनकी भूमिका अहम हो सकती है।
भाजपा शासित राज्यों के CM की मौजूदगी का मतलब
नामांकन के दिन भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद रहेंगे। यह संकेत है कि NDA उम्मीदवार को राष्ट्रव्यापी समर्थन दिखाना चाहता है।
- इससे यह संदेश जाएगा कि उपराष्ट्रपति केवल दिल्ली का प्रतिनिधि नहीं बल्कि पूरे देश का चेहरा हैं।
- विपक्ष पर भी दबाव बनेगा क्योंकि नामांकन को “शक्ति प्रदर्शन” का रूप दिया जाएगा।
विपक्ष की तैयारी
कांग्रेस और इंडिया गठबंधन भी अपने उम्मीदवार पर चर्चा कर रहे हैं।
- विपक्ष चाहेगा कि NDA के खिलाफ एक साझा उम्मीदवार उतारा जाए।
- लेकिन पिछली बार की तरह इस बार भी विपक्ष में एकता की कमी साफ झलक रही है।
- कांग्रेस, TMC और AAP के बीच उम्मीदवार चयन पर मतभेद उभर सकते हैं।
सामाजिक समीकरण का खेल
भारतीय राजनीति में हर बड़े पद पर उम्मीदवार का चयन जातीय और भौगोलिक समीकरण देखकर ही होता है।
- अगर राष्ट्रपति आदिवासी समाज से हैं, तो उपराष्ट्रपति किसी अन्य वर्ग से चुना जा सकता है।
- NDA चाहेगा कि दक्षिण भारत या पूर्वोत्तर से किसी बड़े चेहरे को लाकर अपने विस्तार का संदेश दे।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
भारत इस समय वैश्विक स्तर पर उभरती शक्ति है। उपराष्ट्रपति का पद भले ही कार्यकारी दृष्टि से प्रधानमंत्री जितना प्रभावी न हो, लेकिन विदेश यात्राओं और वैश्विक सम्मेलनों में उनकी मौजूदगी अहम होती है। इसलिए NDA ऐसा चेहरा ला सकता है जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की गरिमा बढ़ा सके।
नामांकन की प्रक्रिया
- 21 अगस्त 2025 को नामांकन दाखिल होगा।
- भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, NDA के बड़े नेता और सांसद इसमें शामिल होंगे।
- इसके बाद संसद के दोनों सदनों के सांसद मतदान करेंगे।
निष्कर्ष
धनखड़ जी के बाद NDA किसे उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाएगा, यह फिलहाल रहस्य बना हुआ है। लेकिन यह तय है कि NDA इस बार भी राजनीतिक और सामाजिक संतुलन साधते हुए रणनीतिक चेहरा चुनेगा। 21 अगस्त को नामांकन के समय जब भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद रहेंगे, तो यह केवल औपचारिकता नहीं बल्कि सत्ता का प्रदर्शन और विपक्ष के लिए संदेश भी होगा।
भारत की राजनीति के लिए आने वाले कुछ दिन बेहद अहम होंगे क्योंकि उपराष्ट्रपति पद का चुनाव न केवल संसद की कार्यवाही बल्कि 2029 की राजनीति का ट्रेलर भी साबित हो सकता है।