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लालू यादव परिवार पर फैसला: कोर्ट ने क्या कहा, कौन-कौन सी धाराएं लगीं?

On: October 13, 2025 4:08 PM
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Lalu Yadav Verdict Hindi
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Lalu Yadav Verdict Hindi / फ्रॉड, साजिश और पद का दुरुपयोग… लालू परिवार पर फैसले में कोर्ट ने क्या कहा, क्या-क्या धाराएं लगाईं?

बिहार की राजनीति में फिर गरमाया लालू परिवार का मामला

बिहार की राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में है।
लालू प्रसाद यादव, उनके परिवार और कुछ सहयोगियों के खिलाफ चले लंबे मुकदमे पर कोर्ट ने आखिरकार फैसला सुना दिया है।

फैसले में कोर्ट ने फ्रॉड (धोखाधड़ी), आपराधिक साजिश (Criminal Conspiracy) और पद के दुरुपयोग (Misuse of Official Position) जैसी गंभीर धाराओं का उल्लेख किया।
यह फैसला केवल एक कानूनी प्रकरण नहीं, बल्कि बिहार की राजनीतिक विरासत और नैतिकता पर बड़ा सवाल भी उठाता है।

केस की पृष्ठभूमि: कैसे शुरू हुआ था यह पूरा मामला?

यह मामला दरअसल IRCTC टेंडर घोटाले से जुड़ा है, जो वर्ष 2006-07 में सामने आया था।
उस वक्त लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे।
आरोप है कि उन्होंने रेलवे के दो होटल (रांची और पुरी) के मेंटेनेंस और संचालन का ठेका एक निजी कंपनी को दिलाने में अपने पद का दुरुपयोग किया।

इसके बदले में उनके परिवार के नाम पर पटना में महंगे प्लॉट्स और प्रॉपर्टीज ट्रांसफर की गईं।
CBI ने 2017 में इस मामले में चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमें लालू यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बेटे तेजस्वी यादव, और कई अन्य आरोपियों के नाम शामिल थे।

आरोपों की मुख्य बिंदुवार सूची

  1. रेलवे होटल टेंडर में अनियमितता:
    CBI का कहना था कि होटल के टेंडर में पारदर्शिता नहीं बरती गई।
  2. रिश्वत के रूप में जमीन:
    लालू परिवार से जुड़ी कंपनी को सस्ती दर पर जमीन दी गई, बदले में होटल के कॉन्ट्रैक्ट दिए गए।
  3. बेनामी संपत्ति:
    पटना में “Delight मार्केटिंग कंपनी” के नाम पर खरीदी गई संपत्तियों में लालू परिवार का अप्रत्यक्ष स्वामित्व था।
  4. पद का दुरुपयोग:
    एक केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद निजी लाभ के लिए सार्वजनिक पद का इस्तेमाल किया गया।

CBI और ED की जांच

CBI ने इस मामले में लालू यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव से कई बार पूछताछ की।
बाद में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी मनी लॉन्ड्रिंग के एंगल से जांच शुरू की।

ED की रिपोर्ट के अनुसार, इस सौदे में “संपत्ति के बदले फायदा” (Property-for-Favour) का साफ सबूत मिला।
ED ने कुछ जमीनों को जब्त भी किया और आरोप लगाया कि यह रकम शेल कंपनियों के ज़रिए घुमाई गई थी। Lalu Yadav Verdict Hindi

कोर्ट में क्या हुआ?

मामला दिल्ली की विशेष CBI अदालत में चल रहा था।
कई वर्षों की सुनवाई के बाद, कोर्ट ने 2025 में अपना फैसला सुनाया।

फैसले में अदालत ने कहा —

“मामले के दस्तावेज़, गवाहों के बयान और वित्तीय लेनदेन के सबूत यह दर्शाते हैं कि सार्वजनिक पद का उपयोग निजी लाभ के लिए किया गया। यह कदाचार (misconduct) और धोखाधड़ी का गंभीर उदाहरण है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह केवल एक व्यक्ति का भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि सिस्टम के प्रति एक विश्वासघात है।

किन धाराओं में कार्रवाई हुई?

कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव और अन्य आरोपियों के खिलाफ निम्न धाराओं के तहत फैसला सुनाया —

  • धारा 120B (आपराधिक साजिश) – IPC के तहत
  • धारा 420 (धोखाधड़ी और छल)
  • धारा 13(2) और 13(1)(d) – भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत
  • धारा 409 (आपराधिक विश्वासघात) – सरकारी पद पर रहते हुए धन या संपत्ति का दुरुपयोग

इन धाराओं के तहत सजा 7 से 10 साल तक की हो सकती है। हालांकि, सजा की अवधि पर अगली सुनवाई में निर्णय होना बाकी है।

कोर्ट की सख्त टिप्पणी

अदालत ने अपने फैसले में कहा —

“सार्वजनिक सेवा में रहते हुए नैतिकता सर्वोपरि होती है।
जब कोई व्यक्ति सार्वजनिक पद का उपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए करता है, तो यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि जनता के विश्वास की हत्या है।”

कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि “राजनीति सेवा का माध्यम है, व्यापार का नहीं।”
इस टिप्पणी ने फैसले को केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक अर्थों में भी अहम बना दिया।

लालू परिवार का पक्ष

लालू परिवार ने कोर्ट के फैसले पर निराशा जताई।
राबड़ी देवी ने कहा —

“यह राजनीतिक बदले की कार्रवाई है। हमें न्यायपालिका पर भरोसा है और हम ऊपरी अदालत में अपील करेंगे।”

तेजस्वी यादव ने भी बयान दिया कि “CBI और ED का इस्तेमाल विपक्ष को दबाने के लिए किया जा रहा है।”
उनके समर्थकों का कहना है कि लालू यादव के खिलाफ केस राजनीतिक मकसद से बनाए गए हैं।

राजनीतिक प्रभाव: बिहार में बढ़ा सियासी तूफान

फैसले के तुरंत बाद बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया।
एनडीए और विपक्ष दोनों ने एक-दूसरे पर तीखे वार किए।

एनडीए नेताओं ने कहा कि यह फैसला लालू परिवार के “काले कारनामों” का सबूत है।
वहीं, राजद कार्यकर्ताओं ने इसे “न्याय का दुरुपयोग” बताया और कई शहरों में विरोध प्रदर्शन किए।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला बिहार की राजनीति को आने वाले चुनावों में गहराई से प्रभावित करेगा।

कानूनी विशेषज्ञों की राय

कानूनी जानकारों का कहना है कि इस फैसले में अदालत ने बहुत मजबूत सबूतों के आधार पर निर्णय दिया है।
फिर भी, बचाव पक्ष के पास अपील का अधिकार है और यह मामला अब हाईकोर्ट में जा सकता है।

कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि “भ्रष्टाचार के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया लंबी होती है, इसलिए अंतिम निष्कर्ष आने में समय लग सकता है।”

जनता की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिली।
कुछ लोगों ने इसे “न्याय की जीत” कहा, तो कुछ ने “राजनीतिक प्रतिशोध” बताया।

#JusticeOrPolitics और #LaluVerdict जैसे हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड करते रहे।
लोगों में यह चर्चा रही कि क्या राजनीति और प्रशासन में अब भी पारदर्शिता बची है या यह सिर्फ दिखावे की लड़ाई है?

राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव की भूमिका

राबड़ी देवी पर आरोप है कि उन्होंने अपने पति के पद का लाभ उठाते हुए परिवार की संपत्ति में वृद्धि की।
वहीं, तेजस्वी यादव पर यह आरोप है कि वे Delight मार्केटिंग कंपनी के बेनामी लाभार्थी थे।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा —

“यह परिवार-आधारित लाभ का नेटवर्क था जिसमें सभी ने किसी न किसी रूप में हिस्सा लिया।”

हालांकि, कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि “अभी सजा की मात्रा तय करने से पहले बचाव पक्ष को अपनी बात रखने का अवसर दिया जाएगा।

फैसले का व्यापक असर

इस निर्णय ने पूरे देश में एक बार फिर राजनीति में ईमानदारी और पारदर्शिता की बहस छेड़ दी है।
कई लोगों का मानना है कि यह फैसला केवल लालू परिवार के लिए नहीं, बल्कि सभी सार्वजनिक प्रतिनिधियों के लिए एक संदेश है कि पद कोई निजी संपत्ति नहीं, बल्कि जनता की जिम्मेदारी है।

आगे क्या?

फैसले के बाद लालू परिवार ने स्पष्ट किया है कि वे इसे दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती देंगे।
कानूनी रूप से उनके पास यह अधिकार है, और तब तक यह मामला अंतिम नहीं माना जाएगा।

कानूनी प्रक्रिया में अभी भी कई स्तर बाकी हैं — अपील, सस्पेंशन ऑफ सजा, और पुनर्विचार याचिका।
लेकिन यह भी सच है कि इस फैसले ने राजनीतिक और सामाजिक तौर पर लालू परिवार की साख को गहरा धक्का पहुंचाया है

निष्कर्ष: न्याय, राजनीति और जनविश्वास के बीच की रेखा

लालू परिवार के खिलाफ आया यह फैसला सिर्फ एक भ्रष्टाचार केस नहीं, बल्कि राजनीतिक नैतिकता का आईना है।
जहाँ एक ओर यह दिखाता है कि कानून सबके लिए समान है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी उठाता है कि क्या भारत की राजनीति अब भी “नैतिक मूल्यों” पर खड़ी है?

इस पूरे घटनाक्रम ने यह साबित किया है कि जनता अब केवल वादों पर नहीं, बल्कि पारदर्शिता और ईमानदारी पर भरोसा करती है।
और शायद यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत भी है।


FAQ

Q1. लालू यादव और उनके परिवार पर यह केस किससे जुड़ा है?
A: यह केस IRCTC होटल टेंडर घोटाले से जुड़ा है, जिसमें रेलवे होटल के कॉन्ट्रैक्ट के बदले जमीन देने का आरोप है।

Q2. कोर्ट ने कौन-कौन सी धाराएं लगाईं?
A: IPC की धारा 120B (साजिश), 420 (धोखाधड़ी), 409 (विश्वासघात) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(d) और 13(2)।

Q3. लालू परिवार ने क्या कहा?
A: उन्होंने इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया और कहा कि वे इस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करेंगे।

Q4. क्या फैसला अंतिम है?
A: नहीं, यह निचली अदालत का फैसला है। अब इस पर हाईकोर्ट में अपील की जाएगी।

Q5. क्या यह फैसला बिहार की राजनीति को प्रभावित करेगा?
A: हाँ, विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला आने वाले विधानसभा चुनावों में बड़ा असर डाल सकता है।

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A. Kumar

मेरा नाम अजीत कुमार है। मैं एक कंटेंट क्रिएटर और ब्लॉगर हूँ, जिसे लिखने और नई-नई जानकारियाँ शेयर करने का शौक है। इस वेबसाइट पर मैं आपको ताज़ा खबरें, मोटिवेशनल आर्टिकल्स, टेक्नोलॉजी, एजुकेशन, हेल्थ और लाइफस्टाइल से जुड़ी उपयोगी जानकारी सरल भाषा में उपलब्ध कराता हूँ।

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