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करवाचौथ की कहानी: प्रेम, आस्था और अटूट विश्वास का पर्व

On: October 10, 2025 5:14 PM
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Karva Chauth ki Kahani
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Karva Chauth ki Kahani

भारत में अगर किसी त्यौहार को प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है, तो वह है करवाचौथ (Karva Chauth)। यह त्योहार न केवल सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष होता है, बल्कि पति-पत्नी के बीच के रिश्ते की गहराई और विश्वास को भी दर्शाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चांद देखकर अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय जीवन की कामना करती हैं।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि करवाचौथ की शुरुआत कैसे हुई? इसके पीछे कौन-सी पौराणिक कथा जुड़ी है? और आखिर क्यों महिलाएं इतने उत्साह और श्रद्धा से इस व्रत को निभाती हैं? आइए जानते हैं करवाचौथ की पूरी कहानी, परंपरा और महत्व के बारे में विस्तार से।


करवाचौथ का अर्थ और महत्व

“करवा” का मतलब होता है मिट्टी का घड़ा या कलश, और “चौथ” का अर्थ होता है चतुर्थी — यानी चंद्र मास की चौथी तिथि। इस दिन मिट्टी के करवे (घड़े) का उपयोग पूजा में किया जाता है, इसलिए इसे करवाचौथ कहा गया।

इस व्रत का महत्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक भी है। यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में निष्ठा, त्याग और विश्वास की मिसाल पेश करता है। भारत के उत्तरी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में यह त्योहार बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।


करवाचौथ की पौराणिक कथा (मुख्य कहानी)

करवाचौथ से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध है वीरवती की कथा। यह कहानी न केवल इस व्रत की पवित्रता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि सच्चा प्रेम किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है।

वीरवती की कथा

बहुत समय पहले एक राजा की सात पुत्रियाँ और एक पुत्र था। सबसे छोटी बेटी का नाम था वीरवती, जो अपने भाइयों की लाडली थी। विवाह के बाद पहली करवाचौथ पर वीरवती अपने मायके आई। उसने सुबह से व्रत रखा — न पानी पिया, न कुछ खाया।

जैसे-जैसे दिन बीतता गया, वीरवती को भूख-प्यास से बहुत कमजोरी होने लगी। उसके भाइयों से अपनी बहन का दर्द देखा नहीं गया। उन्होंने सोचा कि किसी तरह उसे भोजन करवा दिया जाए।

भाइयों ने पेड़ के पीछे एक दीपक जलाकर छल से चांद जैसा दृश्य बना दिया और वीरवती से कहा – “देखो बहन, चांद निकल आया है, अब व्रत खोल लो।”
वीरवती ने भाइयों की बात पर विश्वास किया और भोजन कर लिया।

लेकिन जैसे ही उसने पहला कौर खाया, उसके पति के प्राण संकट में पड़ गए। वीरवती को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने रो-रोकर देवी से क्षमा मांगी। देवी पार्वती प्रकट हुईं और बोलीं —
“वीरवती, तुम्हारा व्रत अधूरा रह गया, इसलिए तुम्हारे पति की आयु घट गई है। परंतु यदि तुम पूरे वर्ष हर मास की चौथ को व्रत रखोगी, तो तुम्हारे पति पुनः जीवित हो जाएंगे।”

वीरवती ने पूरे वर्ष हर महीने चौथ का व्रत किया और अगले करवाचौथ पर उसकी तपस्या सफल हुई — उसके पति पुनः जीवित हो गए। तब से यह व्रत अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र के लिए किया जाने लगा। Karva Chauth ki Kahani


करवाचौथ से जुड़ी अन्य कथाएँ

1. महा भारत काल की कथा

महाभारत के समय में द्रौपदी ने भी करवाचौथ जैसा व्रत रखा था। जब अर्जुन तपस्या के लिए नीलगिरि पर्वत पर गए थे और बाकी पांडव कठिनाइयों में थे, तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ का व्रत रखने की सलाह दी थी। इस व्रत के प्रभाव से पांडवों की सभी समस्याएँ दूर हुईं।

2. करवा और यमराज की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, एक सती नारी करवा अपने पति के साथ गंगा स्नान के लिए गई थीं। वहां एक मगरमच्छ ने उनके पति को पकड़ लिया। करवा ने तुरंत सूत की डोरी से मगरमच्छ को बांध लिया और यमराज से पति की जान बचाने की प्रार्थना की।
जब यमराज ने इंकार किया तो करवा ने कहा — “अगर मेरे पति की मृत्यु हुई तो मैं तुम्हें श्राप दे दूँगी।”
यमराज उनकी भक्ति और सतीत्व से प्रभावित हुए और उनके पति को जीवनदान दिया।
तब से महिलाएं करवा के समान अपने पति की रक्षा के लिए यह व्रत करने लगीं।


करवाचौथ की पूजा विधि

करवाचौथ की पूजा की परंपरा बहुत ही सुंदर और अनुशासित होती है। इसमें महिलाएं सुबह से रात तक व्रत रखती हैं और चांद देखने के बाद ही जल ग्रहण करती हैं।

सुबह की शुरुआत

सुबह सूर्योदय से पहले महिलाएं सर्गी (सास द्वारा दिया गया भोजन) खाती हैं। इसमें फल, मिठाई, सूखे मेवे और पारंपरिक पकवान शामिल होते हैं। यह भोजन पूरे दिन की ऊर्जा का स्रोत होता है।

दोपहर में

महिलाएं दिनभर पूजा की तैयारी करती हैं। वे सजती-संवरती हैं, नए कपड़े पहनती हैं, हाथों में मेहंदी लगाती हैं और पूजा की थाली सजाती हैं।

शाम की पूजा

शाम को सभी महिलाएं एक जगह एकत्रित होती हैं। वे कथा सुनती हैं, करवों का आदान-प्रदान करती हैं और करवा माता की पूजा करती हैं।
पूजा के दौरान करवा चौथ की कहानी सुनी जाती है, जिसमें देवी पार्वती को प्रतीकात्मक रूप से पूजा जाता है।

चांद देखने की परंपरा

रात में जब चांद निकलता है, तो महिलाएं छलनी से चांद को देखती हैं और फिर अपने पति का चेहरा देखकर उन्हें आरती उतारती हैं।
इसके बाद पति अपनी पत्नी को पहला घूंट पानी और मिठाई खिलाते हैं, जिससे व्रत खुलता है।


करवाचौथ का सामाजिक और भावनात्मक पहलू

करवाचौथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है — यह प्रेम, भरोसा और एकता का उत्सव है।
आज के समय में जब रिश्तों में दूरी बढ़ रही है, करवाचौथ उस भावना को जीवित रखता है जिसमें एक पत्नी अपने पति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती है।

अब तो कई जगह पति भी पत्नी की लंबी उम्र के लिए व्रत रखते हैं। यह परंपरा आधुनिक सोच का हिस्सा बन चुकी है, जो बराबरी और आपसी सम्मान को दर्शाती है।


करवाचौथ की आधुनिक झलक

पहले करवाचौथ केवल ग्रामीण या पारंपरिक इलाकों में मनाया जाता था, लेकिन अब यह शहरी जीवन में भी बेहद लोकप्रिय है।
सोशल मीडिया, टीवी शो और फिल्मों ने भी इस व्रत को एक रोमांटिक प्रतीक बना दिया है।
बॉलीवुड की फिल्मों में “कभी खुशी कभी ग़म”, “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे” जैसी फ़िल्मों ने करवाचौथ को ग्लैमर और प्रेम से जोड़ दिया है।

महिलाएं अब करवाचौथ पर डिज़ाइनर साड़ियाँ, पारंपरिक ज्वेलरी और खूबसूरत मेकअप से खुद को सजाती हैं। यह दिन महिलाओं के लिए आत्म-अभिव्यक्ति और सुंदरता का पर्व बन चुका है।


करवाचौथ से मिलने वाला संदेश

करवाचौथ का असली संदेश है समर्पण और सच्चा प्रेम
यह त्यौहार सिखाता है कि जब रिश्ते में आस्था, विश्वास और त्याग होता है, तो वह रिश्ता जीवनभर अटूट रहता है।
करवाचौथ हमें यह भी याद दिलाता है कि किसी भी रिश्ते की मजबूती केवल भावनाओं से नहीं, बल्कि कर्म और निष्ठा से बनती है।


निष्कर्ष

करवाचौथ की कहानी केवल एक धार्मिक कथा नहीं है — यह एक ऐसी भावना है जो हर भारतीय स्त्री के दिल में बसती है। वीरवती की तरह हर महिला अपने पति की लंबी आयु और परिवार के सुख की कामना करती है।

यह दिन प्रेम, आस्था और विश्वास का प्रतीक है, और यही कारण है कि करवाचौथ न केवल भारत में बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों के बीच भी उतनी ही श्रद्धा से मनाया जाता है।

करवाचौथ की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि सच्चा प्रेम कभी खत्म नहीं होता — वह आस्था, भरोसे और समर्पण से और गहरा होता चला जाता है।

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FAQ

1: करवाचौथ क्यों मनाया जाता है

उत्तर: करवाचौथ सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय जीवन के लिए मनाती हैं। यह पर्व प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है, जिसमें महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम को चांद देखकर पूजा करती हैं।


2: करवाचौथ की मुख्य कहानी क्या है?

उत्तर: करवाचौथ की सबसे प्रसिद्ध कथा वीरवती की है, जिसने अपने भाइयों के छल के कारण अधूरा व्रत किया और उसके पति की मृत्यु हो गई। बाद में देवी पार्वती की कृपा से उसने पूरे वर्ष व्रत रखकर अपने पति को पुनः जीवित किया। तभी से यह व्रत सौभाग्य और पति की दीर्घायु के लिए किया जाने लगा।


3: करवाचौथ का व्रत कैसे रखा जाता है?

उत्तर: महिलाएं सूर्योदय से पहले सर्गी खाकर व्रत शुरू करती हैं और पूरे दिन बिना भोजन और पानी के रहती हैं। शाम को वे करवा माता की पूजा करती हैं, कथा सुनती हैं और रात में चांद देखकर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं।


4: करवाचौथ की पूजा में क्या सामान लगता है?

उत्तर: करवाचौथ की पूजा के लिए करवा (मिट्टी का घड़ा), रोली, चावल, दीपक, छलनी, सोलह श्रृंगार का सामान, मिठाई, पूजा थाली, धूपबत्ती और कहानी की पुस्तक आवश्यक होती है।


5: क्या अविवाहित महिलाएं भी करवाचौथ का व्रत रख सकती हैं?

उत्तर: हाँ, कई जगहों पर अविवाहित लड़कियाँ भी यह व्रत रखती हैं। वे अपने भविष्य के पति की लंबी उम्र या अच्छे जीवनसाथी की कामना के लिए करवाचौथ का व्रत करती हैं।


6: करवाचौथ पर चांद न दिखे तो क्या करें?

उत्तर: अगर मौसम के कारण चांद नहीं दिखे, तो महिलाएं परंपरा अनुसार आसमान की ओर देखकर मन से चांद को प्रणाम कर सकती हैं और पति की दिशा में देखकर व्रत खोल सकती हैं। आस्था ही इस व्रत का सबसे बड़ा तत्व है।


7: करवाचौथ केवल भारत में ही मनाया जाता है क्या?

उत्तर: नहीं, आज करवाचौथ न केवल भारत में बल्कि विदेशों में बसे भारतीय परिवारों में भी बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। अमेरिका, कनाडा, यूके और दुबई जैसे देशों में भारतीय महिलाएं इसे गर्व और परंपरा के साथ निभाती हैं।


8: करवाचौथ के दिन पति क्या कर सकते हैं?

उत्तर: पति इस दिन अपनी पत्नी के प्रति प्रेम और सम्मान जताने के लिए उपहार, आभार और साथ देकर उनकी मेहनत की सराहना करते हैं। आजकल कई पति भी पत्नी के साथ व्रत रखते हैं, जो बराबरी और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है।


9: करवाचौथ की पूजा किस देवी की होती है?

उत्तर: करवाचौथ की पूजा मुख्य रूप से देवी पार्वती (करवा माता) की होती है, जिन्हें अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ भगवान शिव, गणेशजी और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है।


10: करवाचौथ 2025 में कब है?

उत्तर: करवाचौथ 2025 में 10 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएं सूर्य उदय से लेकर चांद निकलने तक व्रत रखेंगी।

A. Kumar

मेरा नाम अजीत कुमार है। मैं एक कंटेंट क्रिएटर और ब्लॉगर हूँ, जिसे लिखने और नई-नई जानकारियाँ शेयर करने का शौक है। इस वेबसाइट पर मैं आपको ताज़ा खबरें, मोटिवेशनल आर्टिकल्स, टेक्नोलॉजी, एजुकेशन, हेल्थ और लाइफस्टाइल से जुड़ी उपयोगी जानकारी सरल भाषा में उपलब्ध कराता हूँ।

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